सच्चे गुरुसिख बन पाएं

जिसके साये में लगता है कि महफूज़ हैं हम,
जिसके दर आकर, हर हाल क़बूल हैं हम।

ना आज की किसी उलझनों में डूबने देता है,
ना कल की फ़िकर में मशगूल रहने देता है।

जिसके पास होने से लगता है वज़ूद है क़ायनात का,
एक पल भी भूलो तो लगता है कसूरवार हैं हम।

जुग लगे मिलने में, अब क़दर भी कर पाएं,
इसके नज़र में रहते हैं, इससे नज़र न चुराएं।

पूरन क़ामिल मुर्शद है ये, कुल दुनिया को पाल रहा,
इससे एकमिक होकर आओ, असल में इसको पाएं।

प्यार – नम्रता – शहनशीलता, दोनों हाथों से लुटा रहा,
आओ अब समेटने में ना पड़ें, इन्हे आगे भी बाँट पाएं।

बक्शणहारा बक्श रहा है, सारी दात भी दे रहा,
सारे बंधन काट रहा है, अक्ल के ताले खोल रहा।

मंज़िल ख़ुद है – रस्ता ख़ुद है, हाथ पकड़कर चला रहा,
जन्मों जनम से भटक रहे थे, ये सच का रस्ता दिखा रहा।

नाम धन का दान मिला है, नाम का जाप करते जाएं,
हुक्म में रहना आ जाये जो सच्चे गुरुसिख बन पाएं।  

२८/०६/२०२३

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